कलम के युग में स्याही कच्ची, मगर इसकी कथनी सच्ची और पक्की थी। किबोर्ड के युग में शब्द पक्के मगर भाव कच्चे लगते हैं। क्या आपने कभी चिट्ठियां लिखी हैं? या कभी मां के पास कभी कोई पुरानी रखी चिट्ठियां पढ़ी है? कंप्यूटर का ज़माना आ गया है उंगलियां कीबोर्ड पर ऐसे मचलती हैं कि मानो पैसे गिनने के लिए फड़फड़ा रही हो। मगर इस बीच एक एहसास सा खत्म होता जा रहा है, वह है अपने हाथ से अपनी भावनाओं को लिखने का मज़ा। न जाने क्यों कीबोर्ड से मेरी कुछ ज्यादा बनी नहीं, खासकर तब, जब इमोशंस लिखने की बारी आती है तो मुझे कलम से लिखे हुए, हाथ से संजोए हुए, अपने शब्द ही पसंद आते हैं। चाहे वह बुक मार्कर, हो या अपनी कविताएं लिखना या फिर चंद पंक्तियां लिखना। मुझे यकीन है यह बात वह लोग जरूर समझेंगे जिन्होंने कभी चिट्ठियों से अपने दिल की भावनाएं अपनों तक पहुंचाई हो| जिन्होंने कभी कागज पर वह सच लिखा हो जो वह कभी किसी से ना कह पाए हो। यह बात वह लोग जरूर समझेंगे जिन्होंने अपने सुख-दुख के संदेश कभी अपने प्रियजनों को और सगे संबंधियों को चिट्ठियों से भेजे हो। आज भी मुझे मेरी पुरनी किताबें, मेरे हाथों से लिखे नोटस और कॉपियां