हम जिस पल जन्म लेते हैं उसी पल से हमारा वर्गीकरण शुरू हो जाता है। औरत है या मर्द ? जाति कौन सी है? रंग कैसा है? गरीब है या अमीर?
ये रंगभेद मज़ाक सा लगता है मुझे। ये मज़ाक नही तो क्या है? रंग के आधार पर सुन्दरता को आंकने वाले से कभी पूछा है कि सफेद रंग को खुबसुरती का मानक मानने वालों को काले रंग के बाल क्यों पसंद हैं? बाल सफेद होने पर रंगते क्यों हैं? आंख की पुतली सफेद होने पर डाक्टर के पास इलाज के लिये क्यों जाते हैे। इतना ही नही धर्म को भी रंगो में बांट दिया है लाल रंग किसी धर्म का, हरा किसी का, केसरी किसी का, नीला किसी का। और तो और सुख दुख में भी रंग बांट दिये। सुहागन के लिये लाल विधवा के लिये सफेद। अगर सफेद रंग खुबसुरती का मानक है तो विधवा के सफेद रंग युं भेदभाव क्यों? सफेद लिबास पहनी विधवा को क्यों सुहाग के कामों से दूर रखते हैं। शादी ब्याह में क्यों उनको अलग थलग कर दिया जाता है।
औरत और मर्द की तुलना उनके शारिरिक बल से करने वालों से कभी कहा है कि यदि औरत को कमज़ोर मानकर कर पुरूष से नीचे मानते हो, तो क्यों नही घर के सारे काम तुम संभाल लेते, घर की रसोई का काम, बच्चों को नहलाने धुलान का काम, सब्जी तरकारी राशन खरीदने का काम, रिश्तेदारों की आवभत का काम, साफ सफाई, कपड़े धोने का काम, हर वो काम जो औरत करती है क्यों नही पुरूष संभाल लेते? और पुरूषों की नज़रों में बेचारी, लाचार, कमज़ोर मानी जाने वाली औरत को आराम करने देते। यदि औरत का बल देखना हो तो मजदूरी करती औरतों को देख लो पुरूषों के बराबर का काम करती हैं वो भी। एक मां के बल की आज़माईश करनी हो तो दो पल के लिये उसके बच्चे को हाथ लगा कर तो देखना...
मै यहां केवल ये कहना चाहती हुं औरत और पुरूष में समानता या उंच नीच की लड़ाई और बहस बेमानी है। ये दोनो ही अपनी आप में अधूरे हैं। पुरूष वो है जो औरत नही है और औरत वो जो पुरूष नही है। ये दोनो मिलकर वो बन जाते हैं जो पूरा संसार है। रंग भेद, जाति भेद और लिंग भेद केवल मात्र आपकी सोच को, आपकी क्षमताओं को , एक दायरे में सिमीत करने की एक चाल है। चाल ये के आप अपने शौंक, अपनी क्षमता और अपने गुणों पर ध्यान केंद्रित कर किसी एक या कुछ क्षेत्रों में उंचाईयों को छुने की ब्जाय, खुद को विकसित करने की ब्जाय, उलझ जाये। आप उलझ जाये खुद को दुसरे से बेहतर साबित करने के होड़ मे। ये बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि एक मछली को उसके उड़ने की क्षमता से मापना।
किताबों की दुनिया से
रूचिका सचदेवा
Nice
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंThank you.❤❤
हटाएंWell written...उच्च विचार।
जवाब देंहटाएंThank you.❤❤
हटाएंTrue 🙏🏻
जवाब देंहटाएंThank you.❤❤
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